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“सवालों के घेरे में कानपुर जिला प्रशासन की कार्यशैली”

कानपुर में 30 मई 2025 को चंद्रशेखर आजाद विश्वविद्यालय परिसर में प्रधानमंत्री की जनसभा के कार्यक्रम को कवरेज करने हेतु दागी पत्रकारों को रोक दिया गया था। लेकिन कुछेक दिन ही व्यतीत हुए हैं और जिला प्रशासन की कार्यशैली सवालों के घेरे में आ गई है।
कानपुर में प्रधानमंत्री के हालिया कार्यक्रम के कवरेज को लेकर एक विवाद सामने आया है, जिसमें अनेक पत्रकारों को जन सभा कार्यक्रम स्थल में प्रवेश करने से रोकने हेतु “मीडिया पास” जारी नहीं किया गया । यह प्रतिबंध उन पत्रकारों पर लगाया गया था जिनके खिलाफ छुटपुट मामले तक दर्ज थे, भले ही वे मामले खत्म हो चुके हों या फिर न्यायालय में अभी भी लंबित हों।
जिला प्रशासन के इस कदम पर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि जिन पत्रकारों के खिलाफ “छुटपुट मामले” दर्ज थे, उन्हें कवरेज से रोक दिया गया, जबकि उन व्यक्तियों को प्रधानमंत्री से मिलने की अनुमति मिली जिनके खिलाफ “संज्ञेय धाराओं” (cognizable offenses) के तहत मुकदमे दर्ज हैं। (मुलाकात संबंधी फोटो वायरल हैं।) सत्तारूढ़ दल में रहते हुए उनके कुकृत्य सामने आने पर निकाला तक गया था। लेकिन पार्टी के पदाधिकारियों के चहेते होने के चलते उनके कुकृत्यों पर पर्दा डाल दिया गया था।
जिला प्रशासन का यह रवैया, दोहरे मापदंड (double standards) को उजागर करती है और प्रशासन की प्राथमिकताओं पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है।
पत्रकारों को कवरेज करने से रोकना, भले ही उनके खिलाफ मामूली मामले हों, लोकतांत्रिक प्रक्रिया में प्रेस की स्वतंत्रता (freedom of the press) पर अंकुश लगाने जैसा है।
प्रेस को जनता और सरकार के बीच एक सेतु माना जाता है, और उसे स्वतंत्र रूप से कार्य करने की अनुमति होनी चाहिए ताकि वह निष्पक्ष जानकारी प्रदान कर सके।
दूसरी ओर, ऐसे व्यक्तियों को प्रधानमंत्री से मिलने की अनुमति देना जिनके खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं, सुरक्षा प्रोटोकॉल और सार्वजनिक नैतिकता दोनों पर सवाल उठाता है।
यह घटनाक्रम कानपुर में स्थानीय प्रशासन की कार्यशैली व निर्णय लेने की कार्यकुशलता पर सवालिया निशान लगाता है।

✍️श्याम सिंह “पंवार”
कानपुर

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