देश के अधिकतर राष्ट्रीय राजमार्गों पर टोल टैक्स लिया जा रहा है। समय-समय पर टोल प्लाजों के ठेकेदारों द्वारा सरकारों की सहमति से इसमें मनमाफिक बढ़ोत्तरी भी की जाती है ! लेकिन, टोल टैक्स वसूलने की नीति पर आज कुछ लिख रहा हूं और आपके विचारों की प्रतीक्षा कर रहा हूं।
कानपुर नगर एवं देहात जिले के बीच में पड़ने वाले बाराजोड़ टोल प्लाजा पर जाने के दौरान गुजरने पर फास्ट टैग धारक निजी कार मालिकों से 180 रुपये का टोल टैक्स वसूला जाता है और 24 घंटे के अन्दर वापस आने पर 85 रुपये का टोल टैक्स वसूला जाता है अर्थात निजी कार मालिक को अपनी जेब से 265 रुपये अदा करना पड़ता है।
वहीं अगर 24 घंटे से कुछ ज्यादा समय होने के बाद वापसी पर 180 रुपये ही लिया जाता है अर्थात आने-जाने पर 360 रुपये अदा करना पड़ता है।
वहीं बिना फास्ट टैग धारक निजी कार मालिकों से जाने के दौरान 360 रुपये और वापसी के दौरान 360 रुपये अर्थात 720 रुपये की वसूली की जा रही है।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि 24 घंटे के अन्दर वापस आने पर सड़क को क्या कम क्षति होती है और 24 घंटे के बाद वापस आने पर ज्यादा ?
सवाल यह भी उठता है कि फास्ट टैग वाले वहनों की अपेक्षा, क्या बिना फास्ट टैग वाले वाहनों से सड़क को क्षति ज्यादा पहुंचती है ?
कमोबेस इसी तर्ज पर यही नीति देश के अधिकतर राष्ट्रीय राजमार्गों पर अनेक वाहनों पर उनके भार व वाहन के प्रकार के आधार पर लागू है, जोकि विचारणीय है।
सड़क की क्षति, मुख्य रूप से वाहन के वजन, आवागमन की आवृत्ति और सड़क की गुणवत्ता पर निर्भर करती है। एक वाहन के 24 घंटे के भीतर या बाद में वापस आने से सड़क पर पड़ने वाला प्रभाव समान ही रहता है। वहीं निजी कार में फास्ट टैग लगा हो या न लगा हो, उससे भी प्रभाव तो समान ही रहता है, क्योंकि वाहन का वजन और सड़क का उपयोग एक जैसा ही रहता है। इस दृष्टिकोण से, 24 घंटे के आधार पर और फास्ट टैग लगा होने या न लगा होने पर टोल टैक्स में अन्तर करना सड़क की क्षति के हिसाब से तर्कसंगत नहीं लगता ! एक ही वाहन का एक बार गुजरना, चाहे वह 24 घंटे के भीतर हो या बाद में, फास्ट टैग लगा हो या न लगा हो, सड़क को समान रूप से ही प्रभावित करता है।
“ऐसे में सड़क के रखरखाव और टोल टैक्स निर्धारण के वैज्ञानिक आधार पर विचार करने की आवश्यकता है न कि व्यापारिक लाभकारी मंशानुरूप !”
-श्याम सिंह पंवार✍️


















