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कुशाग्र हत्याकांड: दो साल बाद भी न्याय अधर में, अब और इंतज़ार नहीं! –परिवार–कारोबार टूटकर बिखरा फिर भी इंसाफ की आस

कानपुर, संवाददाता।

कानपुर के रायपुरवा थाना क्षेत्र में दो वर्ष पूर्व 30 अक्टूबर 2023 की शाम जो वारदात हुई, उसने न सिर्फ़ एक परिवार की दुनिया उजाड़ी बल्कि पूरे शहर, राज्य और देश की आत्मा को हिला दिया था। जयपुरिया स्कूल में पढ़ने वाला 11वीं कक्षा का संस्कारी, शांत स्वभाव का छात्र कुशाग्र कनोडिया, रोज़ की तरह कोचिंग के लिए निकला था। पर उस दिन उसे घर लौटना नसीब नहीं हुआ।

यही वह दिन था, जब उसकी पूर्व ट्यूशन टीचर रचिता, उसके प्रेमी प्रभात शुक्ला और उनके साथी शिवा गुप्ता ने मिलकर 30 लाख रुपये की फिरौती के लालच में नाबालिग कुशाग्र को अपने जाल में फंसाया। कोचिंग जा रहे हैं कुशाग्र को रास्ते में रोककर प्रभात ने लिफ्ट मांगी और फजलगंज थाना क्षेत्र स्थित अपने घर पहुंचकर भावनात्मक दबाव बनाकर कुशाग्र को पानी पिलाने के बहाने कमरे में बुलाया। मासूम बच्चा, जो धर्म और संस्कारों से जुड़ा था, किसी बड़े की बात मना नहीं कर सका। उसे पता नहीं था कि यह उसके जीवन का आख़िरी पल होगा।

घर पहुँचते ही तीनों आरोपियों ने मिलकर उसे बंधक बनाया, उसके गले में रस्सी डालकर हत्या कर दी और 30 लाख रुपए की फिरौती की योजना को अंजाम देने की कोशिश की। तत्कालीन डीजीपी विजय कुमार के संज्ञान में प्रकरण आने के बाद पुलिस ने तत्परता दिखाई। शक के आधार पर आरोपियों को हिरासत में लेकर पूछताछ की तो आरोपियों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया और उनकी निशानदेही पर कुशाग्र का शव उनके घर से बरामद हो गया। लोकेशन, सीसीटीवी, कॉल रिकॉर्ड, स्वीकारोक्ति, सब कुछ अपराधियों पर भारी था। तीनों कानपुर सेंट्रल जेल भेज दिए गए। लेकिन हैरानी और पीड़ा की बात यह है कि दो साल बीत जाने के बावजूद आज तक न्याय नहीं मिल पाया है।

 

“ हर तारीख़ इंसाफ की उम्मीद लेकर आती हैं…

कुशाग्र के पिता मनीष कनोडिया सदमे में परिवार समेत सूरत शिफ्ट हो गए। चाचा सुमित कनोडिया भाई-परिवार को संभालते हुए लगातार अदालतों के चक्कर लगा रहे हैं। परिजन कहते हैं—
“हमारा बेटा हमसे छिन गया… पर अदालत से फैसले की उम्मीद अब भी बाकी है।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट आदेश दिया था कि इस प्रकरण का एक वर्ष भीतर निस्तारण किया जाए। लेकिन नौकरशाही, न्यायिक प्रक्रिया की सुस्ती और तारीख़ दर तारीख़ मिलते रहने से पीड़ित परिवार टूट चुका है। दो साल बीत चुके हैं, उनका कारोबार संकट में है। मानसिक स्थिति खराब है और हर पेशी पर सूरत से कानपुर आना किसी दंड से कम नहीं।
घटना के बाद इस्कॉन मंदिरों से लेकर शहर की सड़कों तक हजारों लोगों ने कैंडल मार्च निकाले, भजन-कीर्तन हुए, श्रद्धांजलि सभाएँ हुईं, देश-विदेश में एक ही आवाज़ उठी—
“कुशाग्र को इंसाफ दो… हत्यारों को फांसी दो!”

परिवार का कहना है कि शासन-प्रशासन की ओर से किसी भी स्तर पर सक्रियता नहीं दिखी। बचाव पक्ष के वकीलों के तर्क और विलंबन रणनीति ने पीड़ा को और बढ़ाया है। ऐसा प्रतीत होता है मानो एक नाबालिग छात्र की हत्या कोई मामूली घटना रही हो जबकि परिवार आज भी हर रात उसी खामोशी में तड़पकर सोता है जिसे कानून की देरी ने और गहरा कर दिया।

“कुशाग्र तो वापस नहीं आएगा, लेकिन उसके हत्यारों को फांसी मिलनी ही चाहिए, ताकि कोई और बच्चा ऐसे दरिंदों की हैवानियत का शिकार न बने।”
सुमित कनोडिया, कुशाग्र के चाचा

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